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UP PCS Mains-2024

  • 17 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 8: संविधान के मूल ढाँचे की अवधारणा क्या है? इसके विकास में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (125 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • 'संविधान के मूल प्रावधानों' का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • इसके विकास में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
    • 'संविधान के मूल प्रावधानों' की आवश्यकता के साथ निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    संविधान के वे प्रावधान जिन्हें संसद द्वारा संविधान संशोधन अधिनियम पारित करके निरस्त नहीं किया जा सकता, उन्हें 'संविधान के मूल प्रावधान (संरचना)' कहा जाता है, जैसे संविधान के भाग-III में निहित मौलिक अधिकार, भारतीय राजनीति की संप्रभुता संपन्न, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र, संसदीय प्रणाली आदि।

    • मूल संरचना का सिद्धांत जीवंत संविधान का एक उदाहरण है। संविधान में इस सिद्धांत का कोई उल्लेख नहीं है। यह न्यायिक व्याख्या से उभरा है। इस प्रकार, न्यायपालिका और इसकी व्याख्या ने औपचारिक संशोधन के बिना व्यावहारिक रूप से संविधान में संशोधन किया है।

    मुख्य भाग: 

    'संविधान के मूल प्रावधान' के विकास में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका:

    • केशवानंद भारती मामला, 1973:
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के 'मूल ढाँचे' या 'मूल विशेषताओं' का एक नया सिद्धांत निर्धारित किया।
      • इसने संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति की विशिष्ट सीमाएँ निर्धारित की हैं। इसमें कहा गया है कि कोई भी संशोधन संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं कर सकता।
      • यह संसद को संविधान के किसी भी और सभी भागों में संशोधन करने की अनुमति देता है (इस सीमा के भीतर)।
      • यह न्यायपालिका को यह निर्णय लेने का अंतिम प्राधिकारी बनाता है कि क्या कोई संशोधन मूल ढाँचे का उल्लंघन करता है और मूल ढाँचा क्या है।
    • इंदिरा नेहरू गांधी मामला, 1975:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने 39 वें संशोधन अधिनियम, 1975 के एक प्रावधान को अमान्य कर दिया, जो प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित चुनाव विवादों को सभी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखता था।
    • मिनर्वा मिल्स मामला, 1980:
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक समीक्षा संविधान की एक 'मूलभूत विशेषता' है। 
      • इसने 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के उस प्रावधान को अमान्य कर दिया, जिसके तहत अनुच्छेद 368 में संशोधन किया गया था और घोषित किया गया था कि संसद की संविधान निर्माण शक्ति पर कोई सीमा नहीं है तथा किसी भी आधार पर किसी भी न्यायालय में किसी भी संशोधन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
    • वामन राव मामला, 1981:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने 'मूल ढाँचे' के सिद्धांत का पालन किया तथा आगे स्पष्ट किया कि यह 24 अप्रैल 1973 के बाद लागू किये गए संवैधानिक संशोधनों पर लागू होगा।

    निष्कर्ष: 

    बुनियादी ढाँचे की अवधारणा कार्यपालिका के सामने एक सीमा रखती है जिसके आगे संविधान के प्रावधानों में बदलाव नहीं किया जा सकता। इस प्रकार यह सुनिश्चित करता है कि संविधान के उद्देश्य बरकरार रहें। इसलिये, संविधान के बुनियादी प्रावधान सरकार के कार्यकारी और विधायी विंग को कानून, नियम तथा विनियमन लागू करने में मदद करते हैं जो अंततः लोकतंत्र के स्वस्थ कामकाज की ओर ले जाते हैं।

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